Welcome to Jharkhand Police Academy Hazaribagh

अतीत का स्वर्णिम इतिहास से वर्तमान तक का सफर

सन 1765 मे जब अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी हासिल कर ली तब जनता के साथ उनका सीधे सम्बन्ध कायम हुआ और उनका दायित्व का भी सामना करना पड़ा ।वारेन हेस्टिंग्स ने सन 1781 तक फौजदारो और ग्रामीण पुलिस की सहायता से पुलिस शासन की रूपरेखा बनाने की कोशिश की और अंत मे उन्हे सफल पाया । लार्ड कार्नवालिस का यह विश्वास था कि अपराधियों की रोकथाम के लिए एक वेतन भोगी एवं स्थाई पुलिस बल की आवश्यकता है ।वर्तमान पुलिस शासन की जो व्यवस्था है वो लॉर्ड कार्नवालिस की देन है। लेकिन जब कंपनी की शासन ब्रिटिश सरकार में हस्तांतरित हो गई तो ,विधि व्यवस्था,अनुसंधान,अपराध के रोकथाम के लिए एक व्यापक रूप से कोशिश की गई जिसका परिणाम सन 1861 के पुलिस एक्ट के रूप मे सामने आया और प्रत्येक प्रेसिडेंसी में इसके अनुसार पुलिस की व्यवस्था की गई। अब जब शासन मे पुलिस बल को लाया गया तो ये जरूरी था कि उन्हें जिन कार्यों के लिए सोचा गया उनमे वो दक्ष हो क्योंकि अब ब्रिटिश शासन ने अपना पूरा ध्यान यहां की स्थिति पर दिया और वो भारत मे एक लंबी पारी खेलने के लिए तैयार हो रहे थे तो पुलिस को उन्होंने अपने शासन का एक माध्यम बनाया जिसमे उनके शासन के प्रति डर और जनता से एक रिश्ता भी कायम करना था। आज का झारखंड तब के बंगाल प्रसिडेंसी का एक हिस्सा हुआ करता था जो आज बिहार उड़ीसा से अलग होते हुए वर्तमान स्वरूप में अलग राज्य के रूप मे अस्तित्व मे है। वर्तमान झारखंड को यह गौरव प्राप्त है कि जब ब्रिटिश सरकार ने पुलिस को अपने कार्यों में जब प्रशिक्षित करना चाहा तो इसके लिए उसने प्रशिक्षण संस्थान बनाने पर भी जोड़ दिया। बिदित है कि इस संदर्भ में बंगाल के पुलिस महानिरीक्षक सर ई.आर.हेनरी के आदेश से 18.10.84 को बांकीपुर पटना (बिहार)तथा चिनसुरा हुगली (प. बंगाल) मे कनीय पुलिस पदाधिकारियों की अस्थाई तौर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई थी। पुनः सर हेनरी तथा सर लैंबर्ट की समीक्षा के आधार पर sept.1895 में नाथनगर,भागलपुर (बिहार) मे एक पुलिस प्रशिक्षण विद्यालय की स्थापना की गई यह स्कूल 1908 में हस्तांतरित होकर भागलपुर से रांची (झारखंड)आया और पुलिस महाविधालय के नाम से जाना जाने लगा। सन 1912 में चार्ल्स बैली के अनुशंसा के आधार पर यह महाविधालय रांची से स्थांतरित होकर हजारीबाग आया क्योंकि यहां का मौसम और जलवायु काफी स्वस्थवर्धक है। पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय में सन 1939 तक बिहार,बंगाल,उड़ीसा के राजपत्रित एवम अराजपत्रित पदाधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाता था। Nov.2000 तक यह बिहार का एकमात्र प्रशिक्षण महाविद्यालय रहा बिहार विभाजन के उपरांत यह संस्थान झारखंड राज्य का गौरव का प्रतीक बन गया।विभाजन के पश्चात भी बिहार के राजपत्रित पुलिस पदाधिकारियों की ट्रेनिंग कई वर्षो तक होती रही। इस संस्थान का मूल प्रशासनिक भवन 125 वर्ष से भी पुराना है,इसका जिक्र हजारीबाग गजेटियर में भी किया गया है। वर्तमान समय मे पुलिस की भूमिका मे काफी बदलाव आया है और जनतांत्रिक अधिकारों की चेतना में भी वृद्धि हुई है साथ ही उग्रवाद ,आतंकवाद ,अपराध एवम विधि व्यवस्था की समस्याओं में अत्याधिक बढ़ोतरी हुई है,इन आवश्यकताओं को ध्यान मे रख कर सरकार के द्वारा करीब 43 एकड़ में हजारीबाग के सिंदूर ग्राम के पास झारखंड पुलिस अकादमी का निर्माण किया गया जो कि अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त है जिसमे प्रशासनिक भवन,व्याख्यान कक्ष ,ऑडिटोरियम , कैफेटेरिया,विधि विज्ञान प्रयोगशाला, मैप रीडिंग रूम,सिमुलेशन रूम,आई. ई. डी.मॉडल रूम ,कंप्यूटर लैब ,पुस्तकालय, व्यख्याता कक्ष ,ब्लैक टॉप परेड ग्राउंड एवम आवास ,हॉस्टल आदि की उच्च स्तरीय व्यवस्था की गई है । यहां भारतीय पुलिस सेवा से राज्य में आबंटित हुए आईपीएस (IPS) की भी 2 सप्ताह की ट्रेनिंग होती है। झारखंड पुलिस अकादमी के नए परिसर में पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय 30.07.2012 से ही कार्य करने लगा और अगस्त 2015 में पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय,महानिदेशक एवम पुलिस महानिरीक्षक के आदेश से झारखंड पुलिस अकादमी में परिवर्तित हो गया। और इन सब बातों को कहते हुए एक अपूर्व गौरव की प्राप्ति हो रही कुछ वर्ष पहले ईस्ट जोन का बेस्ट ट्रेनिंग सेंटर होने का इसे गौरव प्राप्त हुआ और इन गौरवमय इतिहास का मैं भी लम्बे समय से हिस्सा हूं ।
##पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय से झारखंड पुलिस अकादमी तक का सफर ## 

#स्वर्णिम अतीत से सुनहरे सफर के तरफ..... #COME TO LEARN #GO TO SEARVE #NEW SLOGAN OF JHARkHAND POLICE ACADEMY #जोहार 🙏🏻🙏🏻 जय झारखंड 25nov 1952 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. एस.के. सिन्हा ने #पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज को #प्रतीक चिन्ह #colour प्रदान किया।यह किसी भी इंस्टीट्यूशन के लिए सम्मान की बात थी;क्योंकि यह पहली बार किसी भी #unit को यह दिया गया हो। 1912 में तीन प्रांतों बंगाल,आसाम,बिहार और ओडिशा के अलग होने के साथ ही इसी वर्ष हजारीबाग में बिहार और ओडिशा के लिए पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज की स्थापना की गई ओडिशा के अलग होने के साथ ही ओडिशा कैडेट और फ्रेडेटरी स्टेट्स के कैडेट जिन्हे प्रशिक्षण के लिए हजारीबाग भेजा जाता था,क्रमशः 1941और 1947 से आना बंद हो गया। पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज जो की ब्रिटिश सरकार की तरफ से पुलिस को अपने काम में दक्ष करने के लिए स्थापित किया गया था, इस कॉलेज में प्रारंभिक समय में सिर्फ एक पक्की दो मंजिला में स्थित है ,इस भवन में तत्कालीन समय में ऊपर की मंजिल पर 70 कैडेट्स के लिए आवास की व्यवस्था की गई थी,और उसमे नीचे के ही मंजिल में कैडेटों के लिए विभिन्न कक्षाओं के लिए कमरे तथा प्रिंसिपल और अन्य अधिकारियों के लिए भी कार्यालय था,जहां राइफल आदि रखने के लिए शस्त्रागार भी थे। 20 घोड़ों के लिए अस्तबल भी था और ट्रेनिंग कॉलेज का अपना अस्पताल भी था ,जिन्हे आज भी देखा जा सकता है । सहायक भवन में लगभग 100 साक्षर कांस्टेबलों को भी प्रशिक्षित किया जाता था।इंस्पेक्टरों का विंग,उन्हे एक अलग भवन में ठहराया जाता था। पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज में पहले भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को भी प्रशिक्षित किया जाता था, जिन्हें बाद में माउंट आबू में प्रशिक्षित किया जाने लगा; यहां प्रशिक्षण में आने वाले भारतीय पुलिस सेवा (IPS officer) को स्थानीय अधिनियम,पुलिस मैनुअल आदि सीखने के लिए हजारीबाग पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज में भेजा जाता था जो अभी भी राज्य में नवनियुक्त भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी को भेजा जाता है। यह परंपरा अबतक कायम है जो पहले दूसरे राज्यों के अधिकारी के लिए थी अब वो झारखंड में पदस्थापित होने वाले #IPS officer के लिए आवश्यक है। यह ट्रेनिंग कॉलेज साक्षर कांस्टेबलों से लेकर पुलिस उपाधीक्षकों तक सभी रैंक के पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित करता है।होम गार्ड के बटालियन कमांडेंट और उत्पाद शुल्क उप निरीक्षकों को भी प्रशिक्षित किया जाता है। हजारीबाग गजट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि पशु क्रूरता निवारण सोसायटी के निरीक्षकों को भी प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव थे। स्रोत: #हजारीबाग गजेटियर         पेज .123